Hanuman Chalisa Pdf हनुमान चालीसा पी डी एफ डाउनलोड हिंदी 2025
हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति निडर हो जाता है तुलसीदास जी ने इस पुस्तक की रचना की थी । हनुमान चालीसा को पढ़ने से जो भूत-प्रेतों से डरता है, उसका डर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। हनुमान जी अमर हैं, उन्हें बजरंगबली के नाम से भी जाना जाता है।
1: जो किसी स्त्री को गलत नजर से देखता है
2: जो हमेशा दूसरों को दुखी करता है
3: जो सच का साथ नहीं देता
4: जो किसी के घर से चोरी करता है
1: जो सबके लिए अच्छा सोचते हैं
2: जिन्होंने किसी तरह का पाप नहीं किया है।
3: जो दूसरों को दुखी नहीं देख सकते।
4: जो हनुमान जी का भक्त है
1: चालीसा पढ़ने से पूरा दिन अच्छा होता है
2: आपकी हर मनोकामना पूरी होगी
3: किसी भी काम में रुकावट नहीं आएगी
4: जो हनुमान चालीसा पढ़ते हैं उन्हें कभी भूत-प्रेत का डर नहीं रहेगा।
5: आप दूसरों के प्रति दयालु होने लगेंगे
तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा लिखी।
हनुमान चालीसा में 40 चौपाई हैं?
हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए सबसे शुभ दिन मंगलवार है, अन्यथा आप चाहें तो इसे सुबह-शाम भी पढ़ सकते हैं। अगर आप अपनी मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो इनका नाम जरूर लें।
हनुमान जी श्री राम के भक्त हैं
भगवान शिव
केसरी और उनकी पत्नी अंजना
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।